Wednesday, January 29, 2014

नर्सरी से शुरुआत


शिक्षा के क्षेत्र में फैली देशव्यापी समस्या का जब तक कोई ठोस हल नहीं निकाला जाएगा तब तक ना तो अभिभवकों की परेशानी कम होगी और न ही बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल पाएगी जो उनका हक़ है।  
शिक्षा विकास की कुंजी है और शिक्षा से ही हम दूसरी समस्याओं को दूर कर सकते हैं। इस तरह की बातें बचपन से सुनते आ रहे हैं। लेकिन इसी के साथ यह भी देखने को मिला है कि ख़ुद हमारी शिक्षा ही एक बड़ी समस्या है। दरअसल देश की पूरी शिक्षा प्रणाली इस तरह की बना दी गई है कि मामला सुलझने की बजाय लगातार उलझता जा रहा है। इसे सुधारने की जब भी और जहां से भी कोई कोशिश शुरु होती है, उसका विरोध भी वहीं और उसी समय शुरु हो जाता है। पिछले दिनों राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के स्कूलों में नर्सरी में दाखि़ले के लिए जब उप राज्यपाल नजीब जंग ने एक दिशानिर्देश जारी किया तो स्कूल मालिकान उसका विरोध करते हुए कोर्ट पहुंच गए। लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट ने निजी स्कूलों की अपील ख़ारिज करते हुए कहा कि नर्सरी में दाखि़ले उप राज्यपाल के दिशानिर्देशों के मुताबिक़ ही होंगे। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन के नेतृत्व वाली पीठ ने अपने फ़ैसले में कहा कि इसमें किसी भी तरह का हस्तक्षेप बच्चों के हितों में नहीं होगा।
दरअसल निजी स्कूलों को लगता है कि दिल्ली के उप राज्यपाल ने नर्सरी में दाखि़ले के लिए सभी स्कूलों को एक ही नियम का पालन करने का आदेश देकर उनकी आज़ादी और स्वायत्तता को ख़त्म कर दिया है। याद रहे कि नजीब जंग ने नर्सरी में दाखि़ले के लिए दिशानिर्देश जारी करते हुए स्कूलों के आठ किलोमिटर के दायरे में आने वाले क्षेत्र को पड़ोसी मानने के साथ ही स्कूल प्रबंधन का 20 फ़ीसद कोटा भी ख़त्म कर दिया था। इसके तहत स्कूल की जगह से आठ किलोमिटर के दायरे में आने वाले बच्चों को दाखि़ले के लिए तैयार प्वाइंट सिस्टम में 100 में से 70 मिलेंगे। इससे बच्चों के अभिभावक ख़ुश हैं और उन्हें लगता है कि नर्सरी में दाखि़ले के लिए मारा-मारी से किसी हद तक राहत मिलेगी और साथ ही डोनेशन के नाम पर निजी स्कूलों के ज़रिए की जाने वाली लूट से भी वो बच जाएंगे। 
लेकिन जहां तक नर्सरी में दाखि़ले का सवाल है तो यह समस्या केवल दिल्ली तक सीमित नहीं है, बल्कि देश के दूसरे शहर और यहां तक कि क़स्बों के अभिभावक भी इससे परेशान हैं। शिक्षा के क्षेत्र में फैली इस देशव्यापी समस्या का जब तक कोई ठोस हल नहीं निकाला जाएगा तब तक ना तो अभिभवकों की परेशानी कम होगी और न ही बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल पाएगी जो उनका हक़ है। अफ़सोस की बात यह है कि इसके हल के लिए ठोस क़दम नहीं उठाए जा सके हैं। इस सिलसिले में अब तक जो कोशिशें की गई हैं, उसमें शिक्षा के असली मक़सद और बच्चों के साथ-साथ बड़ी हद तक देश के हित को नज़रअंदाज़ किया जाता रहा है। शिक्षा का मक़सद अच्छे समाज का निर्माण करना है। इसमें बच्चों का हित यह है कि इसके ज़रिए उन्हें अच्छा इंसान बनने का मौक़ा मिलता है जबकि देश का हित यह होता है कि इसकी ताक़त से वह संसार में अपनी अच्छी पहचान बनाता है। इस संदर्भ में देखें तो हमारी पूरी की पूरी शिक्षा प्रणाली दिशाहीन मालूम पड़ती है या फिर आधी अधूरी है। इसकी सबसे बड़ी वजह तो यही है कि देश के सभी बच्चों को शिक्षा हासिल करने का समान अवसर नहीं मिलता है। एक तो भांति-भांति के स्कूल और दूसरे एक ही तरह के स्कूलों में अलग-अलग प्रकार तथा स्तर की पढ़ाई! मिसाल के तौर पर निजी स्कूल और सरकारी स्कूलों में पढ़ाने लिखाने की प्रक्रिया विभिन्न ही नहीं है बल्कि दोनों स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली किताबें भी आम तौर से एक दूसरे अलग होती हैं। इतना ही नहीं केंद्रीय स्कूल और नवोदय स्कूल की पढ़ाई के तौर-तरीक़े भी अलग हैं। दूसरे राज्यों में भी लगभग यही स्थिति है। इसके पीछे यह तर्क दिया जाता है कि शिक्षा राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आती है। लेकिन सवाल यह है कि क्या बदले हुए हालात में पूरी शिक्षा प्रणाली पर दोबारा विचार नहीं किया जाना चाहिए? ख़ास तौर से ऐसी सूरत में जबकि राष्ट्रीय स्तर पर मेडिकल, इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट से लेकर लोकसेवा की प्रतिस्पर्धी परीक्षाएं सभी के लिए एक जैसी होती हैं।
शिक्षा प्रणाली को दुरुस्त करने या उसमें व्यापक सुधार लाने की ज़रूरत इसलिए भी है क्योंकि अब तक जो प्रणाली लागू है, उससे देश के सभी वर्गों को फ़ायदा हासिल नहीं हो पाया है। आज भी हालत यह है कि अधिकतर अनपढ़ और अशिक्षित मां-बाप के बच्चों को अच्छे स्कूलों में पढ़ने का मौक़ा नहीं मिलता। ऐसे में यह ज़रूरी हो जाता है कि शिक्षा के क्षेत्र में भेद-भाव को दूर करने के लिए ऐसा सिस्टम विकसित किया जाए जिसमें सभी बच्चों को अच्छी शिक्षा पाने का अवसर प्राप्त हो। केंद्र सरकार ने शिक्षा का अधिकार क़ानून बनाकर इस दिशा में कुछ साल पहले जो बड़ा क़दम उठाया था, नर्सरी में दाखि़ले के मामले में दिल्ली हाई कोर्ट के हालिया फ़ैसले से उसमें और भी मज़बूती आएगी। लेकिन पूरे देश को अच्छी तरह से शिक्षित बनाने के लिए पूरी शिक्षा नीति और प्रणाली पर दोबारा ग़ौर करने की ज़रूरत है। साथ ही बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा देने का उपाय करना ज़रूरी है। तभी पिछड़े, कमज़ोर और अल्पसंख्यक वर्ग के बच्चे भी शिक्षित हो सकेंगे और देश विकासपथ पर तेज़ी से आगे बढ़ सकेगा।