गणतंत्र दिवस का त्यौहार करीब है. इस त्यौहार की शुरुआत देश की आज़ादी के कई बरसों बाद हुई. ये आज़ादी आसानी से नहीं मिली थी. इसके लिए बहुत सी कुर्बानियां देनी पड़ी थीं. लेकिन आज़ादी के छे दहाइयों के गुजरने के बाद आज देश की जो सूरतेहाल है, उसका अगर थोडा भी आभास जंगे-आज़ादी के मतवालों को रहा होता तो वो शायद अपनी जानें निछावर नहीं करते. देश अच्छा है, इसकी सभ्यता पुरानी है, हुकूमत का ढांचा भी लोकतांत्रिक है, इस सब के बावजूद ये कहना सही नहीं होगा कि आज हमारी हालत अच्छी है, हम आजाद हैं. हाँ, अगर यहाँ कोई आजाद है तो वह भ्रष्ट और हर तरह से देश को लूटने वाले लोग हैं. इसका एक महत्वपुर्ण कारण शायद ये है कि भारत कि मिटटी में सब को माफ़ करने का खमीर मौजूद है. दूसरी बड़ी विडंबना ये है कि यहाँ कभी कोई इंक़लाब नहीं आया. शायद पुरे विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है जो आज भी जन आन्दोलन से दूर है. यहाँ लोगो की सब कुछ बर्दाश्त कर लेने कि आदत है और इसी आदत कि वजह से उन्हें इससे कोई सरोकार नहीं होता कि असम में जो लोग मारे जाते हैं, वो कौन हैं और क्यूँ मारे जाते हैं? महाराष्ट्र में जब उत्तर भारतियों को मारा पीटा जाता है तो उसके खिलाफ केवल लखनऊ, पटना, रांची और किसी हद तक दिल्ली में प्रदर्शन होता है. मणिपुर को महीनो बंधक बना लिया जाता है, मगर देश के दुसरे हिस्सों में बहुत कम लोगों के कानों पर जूँ रेंगती है. जम्मू वो कश्मीर की समस्या को कुछ लोग आज भी हिन्दू-मुस्लिम की ऐनक से देखने की हिमाक़त करते हैं. इससे भी बढ़कर आतंकवाद का रंग भी कभी हरा और कभी भगवा दिखाई देता है.
आज़ादी के इतने बरसों बाद भी हम देशवासी को एक देशवासी और इंसान क्यूँ नहीं मान पाए, ये एक बड़ा और जवाब तलब सवाल है. हमारे लिए ये प्रश्न इस लिए भी ज्यादा महत्वपूर्ण है क्यूंकि मुझे लगता है कि अगर हमारे अन्दर इंसान को इंसान और गुनहगार को गुनाहगार मानने कि समझ और आदत पड़ जाये तो शायद सूरतेहाल में बड़ी तब्दीली आ सकती है. इस गणतंत्र दिवस पर हमें अपने अन्दर इस तरह की समझ पैदा करने का संकल्प करना होगा. इसके बाद ही हम भ्रष्टाचार के खिलाफ असरदार लड़ाई लड़ सकते हैं. तभी देश से आंतंकवाद का खात्मा हो सकता है और और शायद तभी महंगाई की मार से एक आम आदमी बच सकता है.
इस छोटे से लेख में सभी सब्जेक्ट को छूने का कारण है. ये हमारे नए ब्लॉग का पहला लेख है. इसमें हम उन सभी बातों की तरफ इशारा करना चाहते हैं जो हमें परेशान करती रहती है. हम देश का हिस्सा हैं. भारत केवल जमीन के एक टुकरे का नाम नहीं है. ये एक सभ्यता है जिसमे बहुत सी संस्कृतियाँ हैं. ऐसे में इसे संजोये रखना हमारी भी जिम्मेदारी है. इस सभ्यता से खिलवाड़ करने कि परंपरा को तोडना ज़रूरी है.
ghar ki bat to maloom nahi ho saki waise blog accha hai pata nahikis font me hai mere systm pr font change hai phir bhi bahut khub
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