पाकिस्तान से एक अच्छी खबर आई है. ये सुन कर आजकल किया कभी भी अटपटा लग सकता है, मगर खबर सच्ची मालूम होती है. खबर है कि इस्लामाबाद में भारत पाक ने विदेश सचिवों की बातचीत में ये तय किया है कि दोनों देश आपसी मसले को बातचीत के जरिए सुलझाएँगे. इसी के साथ दोनों ने ये भी तय किया है कि अब एक दुसरे के खिलाफ परोपगंडा नहीं करेंगे. आम लोगों की भाषा में बात करें तो दोनों देशों ने एक दूसरे को गाली देने से तोबा करने का एलान किया है. इस पर दोनों कितने दिन टिके रहते हैं, ये तो आने वाला वक़्त ही बताएगा लेकिन हमें सकारात्मक ख़बर पर सकारात्मक ढंग से सोचने की आदत डालनी चाहिए. अभी तक हिंदुस्तान में पाकिस्तान और पाकिस्तान में हिंदुस्तान के बारे में अच्छा सोचने की आदत नहीं है. किया हाल ही में हुई बात चीत से ये सोच बदलेगी?
नए दौर की बातचीत से सभी को कुछ नई उम्मीदें होती हैं, हमें भी होनी चाहिए. आखिर हिंदुस्तान और पाकिस्तान में विदेश नीति और खासतौर से एक दूसरे के साथ रिश्तों के लिए नीति बनाने वालों को अक्ल कियों नहीं आ सकती? कब तक दोनों देशों के पालिसी-साज़ बेवकूफों की जन्नत में रहेंगे? उन्हें एक बात कियों समझ में नहीं आती कि दहशतगर्दी सिर्फ देशों ही के लिए नहीं, इंसानों और इंसानियत के लिए भी खतरनाक है. इसी के साथ ये भी समझना होगा कि दूसरों के हाथों कि कठपुतली बन कर सैकड़ों हज़ारों साल जीने से तो आज़ादी के साथ एक दिन की ज़िन्दगी जीना बेहतर है.
हिंदुस्तान और पाकिस्तान के आपसी रिश्तों की कहानी पर ग़ौर करें तो मालूम होगा कि दोनों को एक दुसरे पर आज तक भरोसा नहीं हुआ. इतने ही पर बस होता तो शायद अब तक बात बन जाती, लेकिन आज़ादी और बटवारे के बाद दोनों को कभी अपने और अपनी जनता पर भी भरोसा नहीं रहा. यही सबसे खतरनाक बात हुई है. जिस देश के नेताओं और अफसरशाहों को अपने देश की जनता पर भरोसा नहीं होता, उसका हाल कैसा होता है, ये हिंदुस्तान और पाकिस्तान की हालत को देख कर लगाया जा सकता है. हाँ दोनों पड़ोसियों को अगर किसी पर थोडा भी भरोसा है तो वो अमरीका बहादुर हैं. पहले ये गौरव इंग्लैण्ड को हासिल था. अब अमरीका जी जो चाहें दोनों करने के लिए तैयार रहते हैं. इसी लिए जब इस्लामाबाद में विदेश सचिवों की बातचीत के बाद वाशिंगटन ने उस पर ख़ुशी जताई तो मुझे अच्छा नहीं लगा बल्कि उससे भी ज्यादा ये हुआ कि मुझे डर लगने लगा कि एक बार फिर कहीं बहुत से बेक़सूरों की जान ना चली जाए.
मेरे अंदर ये डर यूँही पैदा नहीं हुआ. इसकी लम्बी तारीख है. जब जब भारत पाक के बीच रिश्ते अच्छे होने की ख़बर आई है, कोई ना कोई आतंकवादी हमला ज़रूर हुआ है. उसके बाद जो कुछ होता है वो सब को पता है.
मुझे इस में कोई शक नहीं के हिंदुस्तान की सरज़मीन पर जो दह्शत्गर्दाना हमले हुए हैं, उसके तार पाकिस्तान से नहीं जुड़े हैं, लेकिन हमने कभी ये जानने की कोशिश कियों नहीं की कि दिन रात जिहाद जिहाद बकने वाले ओसामा बिन लादेन को जब अमरीका पैदा कर सकता है और काम पूरा होने पर उसे मार सकता है तो किया वो उस पाकिस्तान में आतंकवादियों के दो चार दस ग्रुप तैयार नहीं कर सकता जिसकी ज़मीन के हर कोने में वो शुरू ही से बेरोक टोक अपना काम अंजाम दे रहा है? डेविड कोलमैन हेडली और तहव्वुर हुसैन राणा किया केवल लश्कर ही के आदमी हो सकते हैं, वो सी. आई. ए. के लिए भी कम करने वाले क्यों नहीं हो सकते? इससे भी बड़ा सवाल ये कि जब ओसामा जिहाद के नाम पर अमरीका के इशारों पर काम करता था तो लश्कर किया सी. आई. ए. के लिए काम नहीं कर सकता? एक और अहम बात, आतंकवाद के खिलाफ लड़ने वाला अमरीका हेडली और राना को भारत के हेवाले कियों नहीं करता जबकि वो भारत को अपना दोस्त और आतंकवाद का शिकार मानता है?
भारत और पाकिस्तान के रहनुमाओं को इन सवालों पर विचार करना चाहिए और अमरीका बहादुर से ज्यादा अपने और अपने देश की जनता पर भरोसा करना चाहिए तभी दोनों के रिश्ते बेहतर हो सकते हैं और दोनों देशों से करप्शन भी मिट सकता है.
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