Wednesday, January 26, 2011

तिरंगा पर सियासत

गणतंत्र दिवस के मोके पर भारतीय जनता पार्टी श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराना चाहती है. अच्छी बात है. तिरंगा देश का झंडा है और इसके किसी भी कोने और हिस्से में फहराया जा सकता है. ये हमारे देश की पहचान और हमारा गौरव है. इसे हमेशा ऊँचा रखना हमारा और सभी देशवासियों का कर्त्तव्य है, लेकिन क्या इसके नाम सियासत करने की इजाज़त दी जा सकती है. मेरे ख्याल से नहीं. इस विचार के विरोध में ये बात मुखर अंदाज़ से कही जा सकती है कि बीजेपी जो कर रही है, उसमें बुरा क्या है? अपने ही देश में लोगों को तिरंगा फहराने कि इजाज़त कियों नहीं दी जा सकती? ये और इसी तरह के ढेर सारे सवालात, हमारे सामने खड़े कर दिए जाते हैं. इन सब सवालों का हमारे पास शायद जवाब भी नहीं है, लेकिन हम हकीक़त से मुंह नहीं चुरा सकते.
जम्मू वो कश्मीर भारत का अटूट हिस्सा है, इसमें मुझे कोई शक नहीं है, लेकिन उसी तरह नागपुर और लालगढ़ भी हमारे देश का अभिन्न अंग है. इसके बावजूद क्या हम ये मान लें कि हर जगह समानरूप से देश का कानून लागू है और हमें कहीं कोई दिक्क़त नहीं हो रही है. अगर इसका जवाब हाँ में है तो इसका मतलब ये हुआ कि हमें अँधेरे और उजाले में फर्क करना नहीं आता और हम अपनी खुली आँखों से भी सच्चाई देखने की हिम्मत नहीं रखते.
लेकिन इससे क्या होगा? क्या स्थिति पर कोई फर्क पड़ जाएगा, क्या हमने कभी ये सोचने की कोशिश की? अगर नहीं तो हमें सोचना शुरू कर देना चाहिए. क्योंकि तभी हम आगे बढ़ सकते हैं. अपने और दूसरे  देशवासियों के साथ इन्साफ कर सकते हैं. जम्मू वो कश्मीर की राजधानी श्रीनगर के लाल चौक की भी एक रियल्टी है. कश्मीर घाटी की हालत देश के दुसरे हिस्सों से अलग है. यही हकीकत है और हमें ये बात मान लेनी चाहिए. हाँ, इसी के साथ मौजूदा हालत को बदलने के लिए कोशिश भी करनी चाहिए और ये सब की ज़िम्मेदारी है, बीजेपी वालों की भी. इस लिए बीजेपी लाल चौक पर झंडा फहराने का जो नाटक कर रही है, उसे छोड़ देना चाहिए.
कश्मीर घाटी की हालत देश के दूसरे हिस्सों से कैसे अलग है, इसका अंदाज़ा पिछले साल जून में वहां शुरू हुये पथराव और हिंसात्मक मुज़ाहिरों के सिलसिले से लगाया जा सकता है. दरअसल बी जे पी और उसकी जन्मदाता आरएसएस को आज तक देश प्रेम का मतलब समझ में नहीं आया. इनकी नज़र में केवल ज़मीन का टुकरा ही देश है, उसपर बसने वालों से देश नहीं बनता है और अगर बनता भी है तो सभी से नहीं बल्कि कुछ लोगों को छोड.कर. ऐसे लोगो में वो कश्मीर घाटी के बाशिंदे को भी शामिल मानती है. इसीलिए तो उसने लाल चौक पर खुद से तिरंगा फहराने का प्लान बनाया. इसमें बी जे पी ने कभी भी ये कोशिश नहीं की कि श्रीनगर और कश्मीर घाटी के दुसरे हिस्सों से लोग अपने आप हाथों में तिरंगा लिए आते और केवल लाल चौक पर नहीं कश्मीर और पुरे देश में हमारी आन बान और शान कि अलामत कौमी परचम को लहराते और सलाम करते. बी जे पी और दूसरी सभी सियासी पार्टियों को इस सिलसिले में इमानदारी के साथ कोशिश करनी पड़ेगी. इन पार्टियों से ये उम्मीद तो की ही जा सकती है कि कम अज कम तिरंगे को सियासत की भेंट नहीं चढ़ाया जाएगा.



Sunday, January 23, 2011

आओ नया संकल्प लें

गणतंत्र दिवस का त्यौहार करीब है. इस त्यौहार की शुरुआत देश की आज़ादी के कई बरसों बाद हुई. ये आज़ादी आसानी से नहीं मिली थी. इसके लिए बहुत सी कुर्बानियां देनी पड़ी थीं. लेकिन आज़ादी के छे दहाइयों के गुजरने के बाद आज देश की जो सूरतेहाल है, उसका अगर थोडा भी आभास जंगे-आज़ादी के मतवालों को रहा होता तो वो शायद अपनी जानें निछावर नहीं करते. देश अच्छा है, इसकी सभ्यता पुरानी  है, हुकूमत का ढांचा भी लोकतांत्रिक है, इस सब के बावजूद ये कहना सही नहीं होगा कि आज हमारी हालत अच्छी है, हम आजाद हैं. हाँ, अगर यहाँ कोई आजाद है तो वह भ्रष्ट और हर तरह से देश को लूटने वाले लोग हैं. इसका एक महत्वपुर्ण कारण शायद ये है कि भारत कि मिटटी में सब को माफ़ करने का खमीर मौजूद है. दूसरी बड़ी विडंबना ये है कि यहाँ कभी कोई इंक़लाब नहीं आया. शायद पुरे विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है जो आज भी जन आन्दोलन से दूर है. यहाँ लोगो की सब कुछ बर्दाश्त कर लेने कि आदत है और इसी आदत कि वजह से उन्हें इससे कोई सरोकार नहीं होता कि असम में जो लोग मारे जाते हैं, वो कौन हैं और क्यूँ मारे जाते हैं? महाराष्ट्र में जब उत्तर भारतियों को मारा पीटा जाता है तो उसके खिलाफ केवल लखनऊ, पटना, रांची और किसी हद तक दिल्ली में प्रदर्शन होता है. मणिपुर को महीनो बंधक बना लिया जाता है, मगर देश के दुसरे हिस्सों में बहुत कम लोगों के कानों   पर जूँ रेंगती है. जम्मू वो कश्मीर की  समस्या को कुछ लोग आज भी हिन्दू-मुस्लिम की ऐनक से देखने की हिमाक़त करते हैं.  इससे भी बढ़कर आतंकवाद का रंग भी कभी हरा और कभी भगवा दिखाई देता है.
आज़ादी के इतने बरसों बाद भी हम देशवासी को एक देशवासी और इंसान क्यूँ नहीं मान पाए, ये एक बड़ा और जवाब तलब सवाल है. हमारे लिए ये प्रश्न इस लिए भी ज्यादा महत्वपूर्ण है क्यूंकि मुझे लगता है कि अगर हमारे अन्दर इंसान को इंसान और गुनहगार को गुनाहगार मानने कि समझ और आदत पड़ जाये तो शायद सूरतेहाल में बड़ी तब्दीली आ सकती है. इस गणतंत्र दिवस पर हमें अपने अन्दर इस तरह की समझ पैदा करने का संकल्प करना होगा. इसके बाद ही हम भ्रष्टाचार के खिलाफ असरदार लड़ाई लड़ सकते हैं. तभी देश से आंतंकवाद का खात्मा हो सकता है और और शायद तभी महंगाई की मार से एक आम आदमी बच सकता है.
इस छोटे से लेख में सभी सब्जेक्ट को छूने का कारण है. ये हमारे नए ब्लॉग का पहला लेख है. इसमें हम उन सभी बातों की तरफ इशारा करना चाहते हैं जो हमें परेशान करती रहती है. हम देश का हिस्सा हैं. भारत केवल जमीन के एक टुकरे का नाम नहीं है. ये एक सभ्यता है जिसमे बहुत सी संस्कृतियाँ हैं. ऐसे में इसे संजोये रखना हमारी भी जिम्मेदारी है. इस सभ्यता से खिलवाड़ करने कि परंपरा को तोडना ज़रूरी है.