Friday, July 22, 2011

मुंबई में धमाके और देश में दहशत...!




मुंबई में एक बार फिर ज़िन्दगी पटरी पर लौट आई है. यह अच्छी बात है. हम आतंकवादियों को इसी तरह शांतिपूर्ण तरीके से जीवन जीने का हौसला दिखाकर मात दे सकते हैं. अगर हम भी उनकी तरह ही डर और दहशत फैलाने वाली बात करें तो इंसान और इंसानियत के दुश्मनों में कोई अंतर नहीं रह जाएगा. यह सीधी सादी बात देश के कुछ मीडिया घरानों और राजनेताओं को समझ में नहीं आती है. उनमें मौत और तबाही के आलम में भी ईमानदारी से कहने और सुनने की शक्ति नहीं है. इनकी ऐसी हरकतों से देश को कितना बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है, इसे वो भली भांति जानते हैं. इसके बावजूद अपनी हरकतों से बाज नहीं आते. मुंबई में 13 जुलाई की शाम को एक बाद अन्य तीन बम धमाकों के कुछ मिनटों बाद ही देश के कुछ निजी टीवी चैनलों और अखबारों ने अपने आप ही तरह-तरह की जानकारी प्रदान करना शुरू कर दी. देश की प्रमुख जांच एजेंसियों से पहले ही चैनलों और अख़बारों के प्रतिनिधियों को मालूम हो गया कि इसमें किस आतंकवादी संगठन का हाथ है. उसी के साथ देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी भाजपा ने भी सरकार से पाकिस्तान नीति की समीक्षा की मांग करना शुरू कर दी. अजीब बात है. देश का गृहमंत्री अब तक किसी संगठन के बारे में संकेत देने से भी इनकार कर रहा है और दूसरी ओर कुछ मीडिया कर्मियों प्रतिनिधियों के साथ भाजपा और शिवसेना को सब कुछ मालूम हो गया. दाल में कितना काला है या पूरी की पूरी दाल ही काली है, यह अभी नहीं तो थोड़े दिनों बाद ज़रूर मालूम हो जाएगा. मुझे विश्वास और भरोसा इसलिए है क्योंकि अब देश में आतंकवादी घटनाओं की जांच प्रक्रिया केवल सिमी और इंडियन मुजाहिदीन तक ही सीमित नहीं रहती. इस भरोसे के बावजूद ये डर अपनी जगह कायम है कि मुंबई बम धमाकों के आरोप में बहुत से बेकसूरों को एक बार फिर जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया जाएगा. इसकी वजह यह है कि जांच को रास्ते से भटकाने की कोशिशें लगातार जारी हैं. देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए इस तरह के प्रयास बहुत ही खतरनाक हैं. शायद आतंकवादी हमलों से भी अधिक खतरनाक! क्योंकि उसके परिणाम में जहां बहुत से निर्दोष जेल भेज दिए जाएंगे वहीं जांच एजेंसियां और सुरक्षा दस्ते दोषियों तक पहुंचने में नाकाम रहेंगे. इस तरह आतंकवादियों को अपनी कार्रवाई करने के लिए खुली छूट मिल जाएगी. वह अपना काम करते रहेंगे और देश के निर्दोष नागरिक मरते रहेंगे. इससे मीडिया को भी अपनी टी आर पी बढ़ाने में मदद मिलेगी और शासक गठबंधन के साथ अपोजीशन दलों को भी बे सर पैर की कहने का मौका हाथ आ जाएगा. मारे जाती है तो जनता और पकड़े जाते हैं तो मुसलमान. इससे उन्हें क्या फर्क पड़ता है जिनकी ज़िन्दगी का उद्देश्य ही पैसा के लिए सत्ता और सत्ता के लिए पैसा हो. लेकिन अफसोस की बात यह है कि इस खेल में कुछ ऐसे लोग भी जाने अनजाने शामिल हो जाते हैं, जिनकी ईमानदारी पर शक करना मुश्किल है. उनकी देशभक्ति भी आर.एस. एस. और भाजपा की तरह आधी अधूरी नहीं करार दी जा सकती. इसके बावजूद उनके बेतुके बयान को किसी भी रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता. ऐसे ही लोगों में से एक हैं जस्टिस वी. आर. अय्यर.


सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस वी. आर. अय्यर ने मुंबई में हुए आतंकवादी हमलों के बाद अपने एक बयान में कहा है कि भारत का असली दुश्मन फिलहाल पाकिस्तान नहीं बल्कि आतंकवाद है. देश के दक्षिणी राज्य केरल के प्रसिद्ध शहर कोच्चि में जारी अपने इस बयान में उन्होंने कहा कि आतंकवादी कार्रवाई का स्रोत नहीं मालूम होने के कारण असुरक्षा का माहौल बना हुआ है. भारत के लिए सबसे बड़ा दुश्मन पाकिस्तान नहीं आतंकवाद है. आतंकवाद, भ्रष्टाचार के बिना संभव नहीं है. पाकिस्तानियों द्वारा भारत में कोई भी कार्रवाई खुफिया तरीके से ही संभव हो सकता है. यह गोपनीयता रिश्वत और भ्रष्टाचार के अन्य कारकों के बगैर मुमकिन नहीं है. उन्होंने कहा कि प्रत्येक भारतीय इस बात पर नज़र रखें कि उसका पड़ोसी क्या कर रहा है तो फिर आतंकवाद आज की तरह विकसित नहीं हो पाएगा. जस्टिस अय्यर का बयान यहाँ तक तो ठीक है, मगर उसके आगे उन्होंने जो बात कही है वह खतरनाक है. उन्होंने अपने बयान में कहा है कि हालांकि पाकिस्तान सरकार ने मुंबई बम धमाकों की निंदा की है लेकिन भारत के प्रमुख मुस्लिम संगठनों ने इसकी निंदा नहीं की है. जस्टिस अय्यर के इस बयान को उनकी लाइल्मी का नतीजा करार देते हुए उसे नज़र अंदाज़ किया जा सकता है, लिकन नहीं साहब, ऐसा नहीं है. वह जान बूझ कर बोले हैं और खतरनाक बोले हैं. उनके बयान से मुस्लिम दुश्मनी की बू आती है. वह कहते हैं कि वो भारतीय मुसलमानों की देशभक्ति को चुनौती नहीं दे रहे हैं, लेकिन इसके स्तर पर उन्हें शक ज़रूर है. जस्टिस वी. आर. अय्यर का कहना है कि अगर भारत का प्रत्येक मुसलमान इसे अपनी मातृभूमि मानने लगे और इसकी रक्षा करना चाहे तो भारतीय पुलिस और खुफिया एजेंसियां दुश्मन मुस्लिम तत्वों की खुफिया गतिविधियों के बारे में आसानी से जानकारी प्राप्त कर लेंगी. इससे भी एक कदम आगे जाते हुए वह कहते हैं कि प्रत्येक मुसलमान को मुस्लिम संगठनों, खासकर विदेशियों की गतिविधियों पर नज़र रखनी चाहिए.


देश में आतंकवादी गतिविधियों का जो सिलसिला जारी है, वह खतरनाक है. इस सिलसिले को तोड़ने की ज़रुरत है और इसमें देश के प्रत्येक नागरिक की भागीदारी होनी चाहिए. उनमें मुसलमान भी शामिल हैं, लेकिन जिस तरह आर.एस. एस और भाजपा के साथ-साथ जस्टिस वी. आर. अय्यर जैसे लोग सीधे तौर से मुसलमानों पर निशाना साधते हैं, वे ऐसी आतंकवादी घटनाओं से भी ज्यादा ख़तरनाक हैं जिनमें कई बक़सूरों की जान चली जाती है. जान देने से अधिक कठिन होता है बदनामी का दाग लेकर जिंदा रहना, लेकिन यह बात शायद देश के मुस्लिम दुश्मनों को समझ में नहीं आती है.


इसके बावजूद हम यह दावा नहीं कर रहे हैं कि भारत का कोई मुसलमान नाम का नागरिक आतंकवादी नहीं हो सकता या पीछे से आतंकवादियों की मदद नहीं कर सकता. ऐसा संभव है कि एक नहीं दो चार मुसलमान नाम वाले भारतीय मिल जाएं जो पैसे के लिए या किसी और वजह से इस तरह की अमानवीय हरकतों में लिप्त हों, या उन्होंने इसे अपना धंधा बना लिया हो. ठीक उसी तरह जैसे स्वामी असीम नन्द, कर्नल पुरोहित और साध्वी परज्ञा ठाकुर देश्दारोही गतिविधियों में लिप्त रहे, लेकिन इससे देश के सभी हिन्दू नागरिकों पर नज़र रखने की बात नहीं की गई. यह मांग होनी भी नहीं चाहिए. एक-दो की गलतियों की सजा पूरी कौम और समुदाय को बदनाम करके नहीं दी जा सकती.


जहां तक देश के मुसलमानों का सवाल है तो उन्होंने कभी दोषियों के समर्थन में विरोध-प्रदर्शन नहीं किया. वह तो बस यह छोटी सी मांग करते रहे कि किसी भी आतंकवादी घटना की जांच खुली आंखों से की जाए. मुसलमानों ने कभी आर.एस. एस और भाजपा की तरह कर्नल पुरोहित और साध्वी परज्ञा जैसे किसी आतंकवादी के समर्थन में आवाज नहीं उठाई. देश में आतंकवादी घटनाओं के सिलसिले में भाजपा और खुफिया एजेंसियों के कुछ जानिबदार अधिकारियों के दोहरे व्यवहार ही का नतीजा है कि इतनी लंबी लड़ाई के बावजूद हम आज तक देश में आतंकवाद का खात्मा नहीं कर पाए हैं.


इस तथ्य के संदर्भ में भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी और पार्टी के प्रवक्ता रवि शंकर प्रसाद के बयानों को समझने की ज़रूरत है. श्री आडवाणी चाहते हैं कि सरकार पाकिस्तान के साथ कूटनीतिक संबंधों पर फिर गौर करे. उधर पार्टी प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद फरमा रहे हैं कि कांग्रेस की वोट बैंक नीति के कारण अब तक आतंकवाद पर काबू नहीं पाया जा सका. अब कोई उनसे पूछे कि साहब आपके कार्यकाल में संसद, अक्षरधाम और दूसरी जगहों पर जो आतंकवादी हमले हुए, उनके पीछे किर तरह के वोट बैंक की राजनीति कारफरमा थी?
आतंकवाद के संबंध में एक बात साफ है, और पूरी दुनिया में इसका अनुभव किया जा रहा है. उसके खिलाफ अब तक लड़ाई केवल इसलिए नाकाम रही है क्योंकि इसमें ईमानदारी नहीं बरती गई है. आतंकवाद का जन्म ज़ुल्मो ज़ियादती और अन्याय के नतीजे में हुआ है या नहीं, यह बहस तलब विषय है, मगर एक सच्चाई सबके सामने है कि आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता. वह किसी विशेष उद्देश्य के लिए लड़ाई भी नहीं लड़ते और इससे भी बड़ी बात यह है कि उन्हें खुद ही नहीं मालूम होता कि वह क्या कर रहे हैं और उनसे कौन क्या काम ले रहा है? भारत जैसे अनेक धर्मों वाले और अनेकता में एकता वाले देश में जहां गरीबी ने डीरे डाल रखे हैं, जहां बेरोज़गारी का दियो लगातार बड़ा होता जा रहा हो, और जहां देश भक्ति के नाम पर कुछ लोग देश की दुसरे बड़े समुदाय को बेवजह बार बार निशाना बना रहे हैं, वहां तो आतंकवादी घटनाओं की जांच और भी अधिक ईमानदारी के साथ किए जाने की जरूरत है. उसी के साथ मीडिया को अपनी स्वतंत्रता का सम्मान करने की हिदायत भी दी जानी चाहिए. देश में हर छोटे बड़े घटना का फैसला मीडिया द्वारा किए जाने कोशिश , एक खतरनाक रुझान है क्योंकि टी आरपी के चक्कर में वह पूरे देश की साख को दांव पर लगाने से भी नहीं चूकता.


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